शनिवार, 25 जुलाई 2009

तुगलक की विरासत और हमारी-----



वर्तमान को इतिहास से जोडने में हमारी प्राचीन धरोहरे एक सेतु का काम करती हैं। आज जब हम अपनें वर्तमान के एश्वर्य पर गर्व करते है वही इतिहास की विशालता हमारे उस गर्व को धुमिल कर देती है।दिल्ली में जहाँ लाल किला, इंडिया गेट, कुतुब मीनार जैसी विख्यात ऐतिहासिक महत्व की जगह हैं। वही कम परिचित इमारतें जैसे हौज खास
गाँव में तुगलक का सुन्दर किला भी एक देखने लायक जगह है। यह तुगलक शासन की एक महत्वपूर्ण निशानी है। १३९८ में तुगलक का बना हुआ यह किला ईडों-इस्लामिक शैली में बना हुआ है। शहर की भीड-भाड से दूर, शांत कोने में दम साधे खडी यह इमारत सबको आकर्षित करती है। बाहर के साधारण सी दिखने वाले इस किले की भव्यता भीतर जा कर ही पता चलती है। अंदर घने पेड बेहद खूबसूरत नजारा प्रस्तुत करते हैं। हौज खास का नामकरण " हौज खास" यानी शाही टँकी खिलजी के नाम पर पडा। गयासुदीन ने भारत के काफि बडे भाग पर शासन किया १३२० से १४१२ तक। तुगलक के शासन के खतम होते ही दिल्ली कई राज्यों में बंट गई। अलाऊद्दीन खिलजी ने सिरी फोर्ट के निवासीयों के लिये इस पानी की टंकी को बनवाया था। इसके साथ ही तुगलाक का किला है और मदरसा भी है जहाँ से कई सारी सिढियाँ शाही टैक की और जाती हैं।
वर्तमान का आँखों देखा सच।
बेशक हौज खास गाँव आज एक अमीर इलाका माना जाता है। यहाँ सैलानियों का तांता लगा रहता है और यहाँ बुटीक, कलात्तमक, बेहतरीन रेस्तरा है।पर उपेक्षित से पडे इस नयनाभिराम किले की हालत को देखकर बेहद दुख होता है, जरूर हमारे देश में पुरातत्तव विभाग है पर अभी वह गहरी नीदं ले रहा है, न जाने कब वह नींद से जागेगा और उपेक्षित पडे इस किले की सुध लेगा। इतिहास हमारा कल है जिस की नींव पर हमारा आज खडा हुआ है, पर जब इतिहास के पाँव लडखडा रहे हो तो हमें अपने आज पर इतना गर्व करना शोभा नहीं देता। सभी पुरानी इमारतें की सुरक्षा सरकार और आम आदमी का परम दायित्व होना चाहिये।

शनिवार, 18 जुलाई 2009

मृगतृष्णा


मृगतृष्णा और इंसान में
उतना ही अंतर है
जितना अंतर प्रेम और प्यास में
जीवन और आस में है
आशाओं के छोटे-बडे टापुओं को लाँघते हुये हम
वहीं पहुँच पाते हैं केवल,
जहाँ दूर तक फैला हुआ पानी है
और लगातार लम्बी होती घनी परछाईयाँ हैं
तमाम उम परछाईयों के पीछें भागते
पानी से प्यास बुझानें की असफलता में
डूबे- ऊबें हम
आस पर टेक लगायें दूर तक
देखने के आदि हो चले हम
एक छलावे से निपटने के बाद
दूसरे छलावे के लिये तैयार हम
कभी रुकते ही नहीं
मानों छलावा ही हमारी नियति है
किसी दुसरी मृगतृष्णा के मुहाने पर
हम तैयार हो बैठे जाते है
दोनो आँखे खुली रखे
और दोनो मुट्ठियों को बंद रखे हुये।

रविवार, 12 जुलाई 2009

हम केवल हमीं से हैं


हर इंसान अपना एक आत्मसम्मान ले कर पैदा होता है। उसकी चेतना में सबसे पहले खुद का सम्मान करना मौजूद रहता है तभी तो जब हम एक छोटे से बच्चें को भी कई लोगों के सामनें डाँट देते हैं तो वो भी बुरा मान जाते हैं। हर इंसान के लिये सहज ही अधिकार उपलब्ध हैं केवल इसीलिये की वह सबसे पहले एक मानव है और इस धरती पर सांसें ले रहा है।
मानवधिकार का मुद्दा आज से नहीं सदियों पहले से ही इस दुनिया में मौजूद है। यहाँ तक की हमारे हिन्दू वेदों, बब्य्लोनियन के हाम्मुरबी कोड, बाईबल, कुरान और क्नफयूसियस की नीतियाँ इन सभी में लिखित रूप हमें हमारे अधिकार, हमारे कर्त्तव्य बताये गये हैं। जो आज के हमारे लिखित मानवाधिकार है। दूसरे विश्व युद्ध से हुये भारी नुकसान के बाद युनाईटीड नेशन ने मानवाधिकारों के बारें में सोचा और फिर लिखित रुप में अस्तित्व में आये। ये अधिकार सभी देश के नागरिको पर बिना किसी भेदभाव के लागू होते हैं। हमारे भारतीय संविधान में भी सभी को बराबर का हक दिये गये हैं।मानवाधिकार नैतिक अधिकारों से ही उत्पन्न हुये है और नैतिकता इस बात में समाहित है की इस धरती पर सभी को समभाव से रहना चाहियें। मानवाधिकारों में हम न केवल राजनैतिक और आर्थिक अधिकारों की बात करते है बल्कि सामाजिक, अपराधिक, बोलने की स्वतंत्रता, किसी भी धर्म को अपनाने की स्वतंत्रता ये सभी अधिकार शामिल हैं। लेकिन राष्टीय और अंतराष्टीय अधिकारों से गुजरने के बाद यह माना जाने लगा है कि मानवाधिकार नैतिक और कानूनी दोनों ही हैं।
हाल ही में यह भी माना जानें लगा है की गरीबी भी मानवाधिकार का उल्लंघन तो नहीं है। एक तरफ तो अमीरी की चकाचौंध और दुसरी तरफ गरीबी के दारूण स्थिती एक इंसान को दुसरे इंसान से किस तरह अलग करती है। हमारे विश्व समुदाय में एक जमात ऐसी भी है जिस के पास खाने के लिये एक वक्त की रोटी भी नहीं है। कानून में राष्टीय और अंतराष्टीय अधिकारों से गुजरने के बाद यह बात साबित होती है की मानवाधिकार नैतिक और कानूनी अधिकार दोनो ही हैं।मानवाधिकारों को पाँच भागों में बाँटा गया है और मानवाधिकार का मुख्य विषय एक इंसान को मामूली चीजें मुहैया करवाना है। मानवाधिकार की भाषा बेहद सीधी और सरल होनी चाहिये और विषम परिस्तिथी में मानव द्वारा इस्तेमाल में की जा सकती हो। एक साधारण से साधारण इंसान को किसी दूसरे इंसान के साथ राष्टीय और अंतराष्ठीय स्तर पर किस तरह का व्यवहार करना चाहियें। मानवाधिकार के बिना सभ्य समाज की कल्पना ही रोंगटे खडे देता है। २००२ में गुजरात में हुआ नरसंहार,ब्राजील, जामिबिया, ईजिपट,रशिया, युकेन,जामबिया,पाकिस्तान,चीन,बेलारूस, कीनिया, इन सभी में मानव अधिकारों का घनघोर रुप से उलंन्घन होता है। मानवाधिकार का रूल न १८ कहता है कि सभी को अपनी मन मुताबिक धर्म को अपनाने की छूट होनी चाहियें, बावजूद इसके कई देशों में बाईबल खरीदनें की पाबंदी है, जो लोग इस का उलंघन करते हैं उनहें बेइज्जती का सामना करना पडता है। हमारे भारत का तो यह हाल है कि संसार का सबसे विशाल लोकतंत्र होने के बावजूद मानवाधिकार की कोई व्याख्या भी नहीं है और ना ही इससे सम्बंधित कोई रिकॉर्ड ही उपलब्ध है। आम आदमी से बुरा व्यवहार, दहेज के लिये लडकियों को जलाना, सेना द्वारा महिलाओं का रेप, पुलिस कस्टडी में मौत, बाल मजदुरी करवाना आदि अनेकों मानवाधिकार उलंघन के किस्से प्रकाश में हैं। हाल ही में श्रीलंका में हुये हमले में हुई जान माल की हानि हुई और मानव अधिकार का सरेआम उलंघन हुआ था। अभी भारत में होमोसैक्सयुएलटी को गुनाह के दायरे से हटा दिया गया है क्योंकि इसे भी मानवाधिकार का उलंघ्न माना जा रहा था, इस पर नये सिरे से बहस छिड गई है। भारत में मानवाधिकारों के लिये काफि कुछ किया जाना बाकि है। भारत में बच्चों से साथ होने वाले दुवव्यवहार को रोकने के लिये कोई कानून नहीं है।आज जब दुनिया भर में मानव अधिकारों की सुरक्षा का हो हल्ला मचा है तो यह जानना हर इंसान को जरूरी है की उसे उसके मानव मात्र होने की वजह से ही ये अधिकार मिले हैं और उसे इनका पूरी जानकारी होनी चाहिये।