मेरी पहली कविता अकटूबर २००१ अंक में छपी थी और अब कादम्बिनी के अकटूबर २००७ अंक में छपे आलेख 'ब्लाग हो तो बात बने' को पढकर हिंदी ब्लाग बनाने की परेणा
आज फिर वही
और तुममें बस इतना-सा ही है कि मैं-मैं हूँ और तुम-तुम हो।माना कि हृदय धडकतें हैंदोनो के एक सी गति से,तिरोहित हो बहता हैअविरल लहुतुममें भी और मुझमें भी।फिर भी तुम-तुम हो और मैं-मैं।चारों अओर घटता रोज का यह हंगामा देखा है मैनें भी, तुमनें भीतुम अनदेखा कर बढ जाते हो आगेमैं रूक जाती हुँ क्योकि मैं,मैं हुँ, तुम- तुम।
2 टिप्पणियां:
विपिन नये चिट्ठे के लिए बधाई और खूब लिखने और अच्छा लिखने की और बहुत से पाठक पाने की शुभकामनाएँ
छोटी सी यह कविता अच्छी लगी , इस जिद को बनाए रखें
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