गुरुवार, 21 जनवरी 2010

एक जीवन यह भी


ताउम्र जीवन की आपाधापी में संघर्ष चलता रहता है। एक बडा हिस्सा समाज में स्वयं को स्थापित करने में गुजर जाता है । जब जीवन का उतरार्थ ठीक सामने दिखाई पडता है तब सब कुछ हाथ से फिसलता प्रतीत होता है । यह ठीक है जीवन में कुछ प्रतिबध्तायें होती हैं जिनको निभाना नितांत आवश्यक है। परन्तु कुछ ऐसे कम भी आवश्यक हैं जिनकी तरफ सबका ध्यान नहीं जाता । स्वयं को जानना ओर समाज को यथासंभव योगदान देना इत्यादि । हर एक समाज में कुछेक लोग ऐसे भी हैं जो धरती पर जन्म लेकर अनमोल मानव तन का सदुपयोग कर ताउम्र कर्तव्यों मे लगे रहते हैं ताकि अधिक से अधिक समाज के काम आ सकें ।
जीवन के इसी उतरार्थ के अंतिम पडाव की यात्री हैं डाक्टर कौश्लया मल्होत्रा। ९० वर्ष डाक्टर मल्होत्रा इस उम्र मे भी जबदस्त आत्मविश्वास से लबरेज हैं । उन्होने अपना जीवन अपने ढंग से जिया और इसी स्वतंत्रता का सदुपयोग भरपूर समाज सेवा ओर ज्ञान के प्रचार प्रसार में किया ।


पहली पारी


अपने जीवन की पहली पारी में उन्होंने स्त्री जीवन के वे सभी आयाम झेले जिससे हमारे समाज की हर दूसरी-तीसरी स्त्री को दो-चार होना पडता है । घर मे लडके को अधिक महत्व देना, छोटी नादान में विवाह, ससुराल पक्ष से उपेक्षा पूण व्यवहार, इन सभी झकझोर कर देने वाली स्थितियों में उन्होंने आगे पढने का निश्चय किया । बच्चों की परवरिश के बीच एमबीबीएस, एमएस की श्रमसाध्य पढाई की । घर परिवार का रवैया हमेशा असहयोग का रहा । परन्तु उन्होंने बेहद लगन एवं ईमानदारी के साथ कमयोगी चिकित्सक का कार्य किया ओर अपनी साफ-सुथरी एवं दबंग छवि के कारण हर ओर से प्रशंसा अर्जित की ।
कई मरणासन्न प्रसूताओं को उन्होंने अभूतपूर्व धैर्य और समझदारी के साथ नया जीवन पदान किया जिस कारण पूरी उम्र उन महिलाओं की दुआएँ पाती रही । उन्हें यह बात हमेशा सताती रही कि समाज में किस तरह लडकी व लडके के बीच भेद-भाव किया जाता है । मातृत्व का भयंकर अपमान उन्हें कतई गँवारा नही था । इसी कारण परिवार वालों को अक्सर ही उनकी तगडी फटकार सुननी पडती थी। जीवन की पहली पारी एक बेहतरीन कुशल चिकित्सक, सर्जन के रूप मे सफलतापूर्वक खेली और खूब वाहवाही बटोरी।

दूसरी पारी


डाक्टर कोशल्या मल्होत्रा ने दूसरी पारी भी उसी मुस्तैदी से खेली जिस सफलता से उनहोंने पहली पारी को अंजाम दिया। समय के साथ-साथ उनमें परिपक्वता आई ओर समाज सेवा ने उनके जीवन को नई दिशा दी । स्त्री के मसले उनकी सूची मे सर्वोपरी हैं । शिक्षा में पिछडापन, महिलाओं से दुर्वव्हार, उचित सम्मान का अभाव, सेहत के प्रति लापरवाही, लडके की चाह में बार-बार माँ की सेहत के प्रति खिलवाड, ससुराल में उपेक्षा आदि सभी मामलों से निपटने के लिए उनहोंने ' महिला सुरक्षा समिति ' बनाई जिसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं की अस्मिता की रक्षा करना है ।इस उम्र में भी समाज सेवा व ज्ञान अर्जित करने की अद्भुद जिजीविशा देखकर अचरज होता है। राजनीति, धर्म, अध्यात्म, योग, सभी विषयों में उनकी अच्छी पकङ है और हर विषय पर अपना सटीक दष्टिकोण है जो जीवन को विशाल फलक प्रदान करता है।
कहा जा सकता है डाक्टर कौशल्या मल्होत्रा का जीवन एक ऐसा बरगद है जिसकी छाया तले असीम शीतलता है। युवाओं को उन्हीं के समकालीन, समदर्शी बुजुर्गो से बहुत कुछ सीखना चाहिए।

शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

चिडियों का गीत


हिंदी साहित्य में जिस तरह सुमित्रा नंदन पंत अपनी कविता में पराकार्तिक छटा बिखेरते है उसी तरह का रंग यह चीनी कविता अपने में समाहित किये हुये है। विश्व कविता का एक मोती है चीनी कविता।


छन चिंग-रुंग

मई के महीने
कया कहती है चिडिया पहाडों मे
फसले और पौधे
फसले ओर पौधे
कोयल कुकती है ध्यान से
किसानों को समझाती न गँवाऔ वक्त

चारों तरफ है हरा भरा धान
कयों कूके जा रही कोयल
तपती है धूप
तपती और तपती
सफेद बादलों और नीले आसमां तले फाखता
नहीं ले पाता, चैन धरती लाल, हरी घास और
पेड
धुपैले आसमां को ताकते
चिंताओं से घिरा आसमां
गहरी शत में
कोयल और फाखता
और कुछ कुछ चिडियाँ कूकती एकाध बार
बुलाती चँद सितारों को
और फिर एक पूरा चाँद ।