मंगलवार, 6 जुलाई 2010

आकाश और उसके रहस्य


आसमान हमसे कोसो दूर है इसीलिये शायद सपनों की खाद-पानी हम वहीं से लेते है और जब भी सपनों की बात होती है तो हमें आकाश ही याद आता है। बचपन में टुटते तारों को देख कर अपने मन की बात दोहराना और मरने के बाद किसी का ऊपर आकाश की ओर पलायन कर जाना आदि ढेरों ऐसी बातें हैं जिनहें आज भी सच समझनें को मन करता है।
बहरहाल आकाश का सच यह है कि आकाशगंगाओं का समूह है। पृथ्वी जरूर गोल है पर ब्रह्मांड नहीं, यह तीन तत्वों से बना है, हाईडरोजन, हिलीयम और ओक्सिज़न। ब्रह्मांड को १५ से २० बिलियन वर्ष पुराना माना गया है।
एक वक्त था जब धरती को और नज़दीक से समझने में जुटे हुए डार्विन १८४२ में 'ओरिगिन ऑफ़ स्पेसिएस' लिख रहे थे तो दुसरी ओर बिग बैंग थ्योरी के ज़रिये आकाश के रहस्यों से जूझ रहे थे।
जैसे ही सूरज बनने की तैयारी में था , गुरुत्वाकर्षण के कारण गैस और आसपास की धूल एक गोलाकार घेरे में सिमट गई और एक घेरे के चारों ओर धूल और अनाज एक दूसरे के साथ चिपक गयी और बर्फ के साथ चिप परत ने उन चीज़ों को बडे गोले में बदल दिया, इस तरह बना सूरज।
जिन्हें हम तारें कहते हैं वो कुछ और नहीं बल्कि बहुत दूर के सूर्य हैं वे भारी समूहों में व्यवस्थित है आकाशगंगा के रूप में। हमारी धरती भी मिलकी वे नाम की एक आकाशगंगा है।
इसी में एक भोर का तारा होता है जो पूर्वी आकाश में सूर्योदय से ठीक पहले एक ग्रह (आमतौर पर वीनस) होता है,
उसी पर एक छोटी सी कविता लिखी थी मैंने

भोर का तारा

भोर का तारा बन छुपी रही मैं

आकाश के विशाल धरातल पर

सूरज के तेज़ तले

जहाँ न रहा मेरा होना भी मेरा होना

पडी रही मैं चुपचाप

एक कोने में निर्जन, चुपचाप

हाल पुछने कोई ना आया,

ना सूरज, ना चदाँ,

ना उनका कोई भी कारिंदा