रविवार, 26 अप्रैल 2009

बेहतर पसंद


एक आहवाहन के साथ
एक आवाज आई


मैं उस वक्त भी उसके साथ थी
यह बेहतर पंसद का मामला था
जो दोनों तरफ से एक साथ
उठना था


पर न जाने क्यों कुछ बुरें धब्बें पडनें ही थे
जो अपना काम कर ही गये और मैं
असहज हो गई

जब एक साथ कई हकीकतों ने एक साथ
सिर उठाया तो बडी हकीकत और छोटी हकीकत का
अंतर समझ में नहीं आया
इससे पहले की मामला कुछ साफ होता
पूरा का पूरा सच मुझें अपनी चपेट में ले
चुका था।