शनिवार, 30 जून 2012

Sated Magazine: Welcome to the online home of sated magazine. We'r...

Sated Magazine: Welcome to the online home of sated magazine. We'r...: Welcome to the online home of sated magazine. We're still getting things up and running around these parts, but please stay tuned for upcomi...

बुधवार, 27 जून 2012


भरी तरुणाई में जीवन का अस्त होना
ध्वनियों के छितरे हुए कतरे नहीं
छोटे और महीन तिनके हैं
ये बातें  
एक-एक कर इकट्ठी होती चली गयी जो
दोस्ती के एक हरियाले पेड़ पर
इन्हीं तिनकों से नन्हा सा घोंसला बनाता है
कहीं से उडते-उडाते
दो चिडियों का जोड़ा उस हरियाले पेड़ पर रहने लगता है
और फिर एक दिन
एक जालिम झोंका बातचीत के इस 
घोंसला को तितर बितर कर देता है
और यत्न से इकठ्ठे किये तिनके चारों दिशाओं में बिखरे नज़र आते हैं
 
इंटरनेट की आभासी दुनिया इतनी आभासी दुनिया नहीं है जितना की इसे समझा जाता है. इस आभासी दुनिया के आंगन में भी कई संबंध बनते-बिगडते हैं. कई नन्हें दोस्त  भी बनते है जो अभी जीवन के बड़े-बड़े जूतों में अपने पाँव डाल कर चलना सीख ही रहे होते हैं.
तहलका के फोटोपत्रकार तरुण सहरावत से परिचय करवाने का माध्यम भी यही इंटरनेट ही बना. महज डेढ़ साल की यह आभासी दोस्ती अचानक एक गहरे शोक में बदल गयी जब १५.६.१२ को तरुण के अचानक से चले जाने की खबर मिली.
फोटो पत्रकारिता का युवा चेहरा तरुण सहरावत अब हमारे बीच नहीं हैं. उसके अनगिनत जान पहचान वाले, दोस्त, नाते-रिश्तेदार सभी स्तब्ध थे. तरुण की फेसबुक वाल शोक संदेशो से भरने लगी है जो कुछ दिनों की सरगमी के बाद कहीं गुम हो जायेगी दुनिया के पिछले दस्तूर के मुताबिक.
 आपकी दिवाली कैसी रही वाक्य से तरुण से बातचीत की शुरुआत हुई और चार जून को मेरी प्रोफाइल पिक्चर पर तरुण की टिप्पणी और एक लिंक जिस पर तरुण के अबुजमर्ड, (छतीसगढ़) के माओवादी इलाके में खींचे गए थे के चित्रों के बीच में ही हमारी बातों का सिलसिला सिमट कार रह गया. इसबीच में तरुण से दो-तीन बार फोन पर बातचीत भी हुई.
तस्वीरे ही तो थी जो बातचीत के सिलसिले को निरंतर धार देती रही. तरुण की भेजी हुयी पंजाब, बिहार, दिल्ली की तस्वीरों के अनेकों लिंक और फिर ये बातचीत कि आज में लखनऊ में हूँ, आज पंजाब में, आज घर में बोर हो रहा हूँ, मम्मी-पापा गोवा गए हैं, तो आपने अपने दोस्तो के साथ खूब मस्ती की आपकी तस्वीरे देखी मैंने, हाँ- हाँ जन्मदिन ट्रीट जरूर दूँगा. क्या आज आप फ्री है आदि आदि.
तस्वीरों में दिलचस्पी के कारण ही वह हमेशां अपने दोस्तों के साथ मेरी तस्वीरों पर अपना फोटोग्राफर रिमार्क जरूर दिया करता और जब साहित्य अकादमी और रमणिका गुप्ता द्वारा संपादित युद्धरत आम आदमी महिला विशेषांक के एक संयुक्त आयोजन के सिलसिले में तरुण सहरावत से बात करने का अवसर आया तो फोन के उस पार से शर्माती हुई एक तरुण आवाज़ सुनाने को मिली.
एक युवा की तरह तरुण भी सपनों और जुनून से लबरेज़ था फोटोपत्रकार था. कई स्थानों और अनोखी, अनदेखी घटनाओं को अभी उसके कैमरे में कैद होना था.
युवा प्रोफ़ेसनलस को हमेशा से खतरे की स्तिथियों में आगे रखा जाता है. युवापन की शोखी भुनाने के लिए व्यापारी दुनिया हर कदम पर तैयार रहती है. तरुण दुनिया को अपनी लेंस के जरिये देख-परख रहा था ये सिलसिला ओर गंभीर होता चला जाना था.पर ये खुशनसीबी हम लोगों को नसीब नहीं होनी थी.
भारत देश की पत्रकारिता के बारे में प्रसिद्ध पत्रकार पी साईंनाथ ने एक बार कहा था कि मैं अक्सर महसूस करता हूँ की पत्रकार सिर्फ ऊपरी पांच प्रतिशित को ही कवर कहते हैं इसलिए नीचें के बाकी पाँच प्रतिशित पर मुझे ध्यान देना चाहिए. पत्रकारिता में अपनी जान को अपनी भरोसे पर लेकर चलना होता है. युवा पत्रकार अपने जुनून के चलते दूर दराज़ के भीहड इलाकों में चले जाते हैं. वहाँ स्वास्थ्य और सुरक्षा के कोई इंतजामात उनके साथ नहीं चलते. डू एंड डोनट्स की कोई हिदायते उनके साथ नहीं होती. क्या इस तरह की लापरवाही से नाजुक स्थानों में भेजे जाने और वहाँ की परिस्तिथियों से होने वाली मौत के प्रति उन संस्थानों की जवाबदेही हैं इस देश में, उन्हें कब ये समझ में आयेगा कि देश के ये होनहार नौजवान इस तरह आकस्मिक काल का ग्रास बनने के लिए नहीं है.
किसी भी युवा और होनहार इंसान के इस दुनिया से चले जाना एक समाजिक दुःख की श्रेणी में आती है और तरुण की अकालमृत्यु भी इसी क्रम की ताज़ा कड़ी है. छतीसगढ के जंगलों से लौट कर मस्तिष्क मलेरिया, टाइफाइड और पीलिया से एक साथ लड़ते हुए तरुण थक गया था. शरीर की  असंभव और जटिल बाधाओं, जिगर, फेफड़े, गुर्दे, मस्तिष्क और कोमा को पछाड कर तरुण एक बार धीमे कदमों से जीवन में लौट भी आया और होश में आते ही सबसे पहले तरुण ने अपने कैमरे के बारे में पूछा. लेकिन १० जून को तरुण के मस्तिक्ष में तीव्रता से रक्तस्त्राव होने लगा लेकिन अंत में हमने तरुण को १५ जून को खो दिया.
अपने चले जाने से पहले तरुण ने उल्लेखनीय काम करते हुए देश की कुछ दुर्लभ तस्वीरों को कैमरे में कैद किया. माओवदियों के गढ़ अबुज्मढ़ बिहार  की आदिवासी औरते, बच्चों की खालिस मासूमियत और आदिवासी पुरषों के चेहरे पर पसरे सन्नाटे को सबने देखा. अपनी पारखी नज़र और चुस्त निर्णय के जरिये तरुण अपने काम में माहिर था. आने वाले कितने ही नवांकुर फोटोपत्रकारों के लिए तरुण सहरावत प्रेरणा का स्रोत होने का मादा रखता था.
एक कुशल फोटोपत्रकार की तरह तरुण सहरावत, तकनीक और निर्णय करने की अद्भुद शक्ति के जरिये छवियों पर कब्जा करता रहा. वह यह ठीक से जानता था कि घटनाएँ किसी का इंतज़ार नहीं किया करती. एक फोटोपत्रकार को हमेशा तत्पर रहना चाहिए और उसे अपना कैमरे को अपना बगलगीर बनाये रखना चाहिए. उसे अच्छे से मालूम था कि दिलचस्प और मज़ेदार तस्वीरें फोटोपत्रकार के त्वरित और सतर्क निर्णय का ही परिणाम होती हैं.
अथाह दुःख का सबब बनी इस आकस्मिक मृत्यु को सबने लोदी रोड स्तिथ शवदाहगृह में शुक्रवार ३ बजे अंतिम विदाई दी. यहाँ मौजूद सभी लोगों का मन इस तरुण मौत पर हाहाकार कर रहा था. मेरा तरुण से परिचय फेसबुक  और महज दो-तीन फोन वार्ता तक ही सीमित रह गया पर इस बाईस वर्षीय युवक की मासूमियत इसी दायरे के भीतर रह कर भी मैंने बखूबी पकड़ ली और तरुण की यही मासूमियत उसकी आकस्मिक मौत को और ज्यादा ग़मगीन बना रही है आज मेरे नजदीक. इस उम्मीद को पुख्ता बनाते हुए कि एक इंसान के याद किये जाने के लिए जो चीजें काफी होती हैं वे हैं कोमल मन और एक मासूम मुस्कान.
तरुण सहरावत के कैमरे से कुछ चित्र



गुरुवार, 14 जून 2012

Babba Bulleh Shah Poetry translated by Kartar singh Duggal

Translation: मेरी बुक्कल दे विच चोर
by Kartar Singh Duggal
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There is a thief in the folds of my arms.
Whom shall I tell?

There is a thief in the folds of my arms
He has, of late, escaped on the sky
No wonder there is a stir in the sky
And the world there is a hue and cry.
Whom shall I tell?

The Muslims are afraid of fire
And the Hindus dread the grave
Both of them have their fears
And keep on sharpening their staves.
Whom shall I tell?

Ramdas here and Fateh Muhammad there
This has kept them emitting spleen
Suddenly their quarrel came to an end
When someone else emerged on the scene.
Whom shall I tell?

There was furore in the flushed sky
It reached Lahore, the capital town
It was Shah Inayat who crafted the kite
It’s he who moves it up and down.
Whom shall I tell?

He who believes, he alone has known
Everyone else id floundering
All the wrangling came to an end
When Bulleh came to town.
Whom shall I tell?