शुक्रवार, 5 जून 2009

लोकतंत्र की इस लडाई में


अगर हमें आजादी चाहिये तो इसके लिये हमें अपना पूरा जीवन जोखिम में डालना पडेगा। यह बात सू कि से बेहतर कौन जानता होगा जो म्यानमार में लोकतंत्र की माँग के एवज में पिछले तेरह सालों से रँगून में अपने घर में नजरबंद हैं। यह है बडी माँग के बडे लोकतंत्र की माँग के बडे खतरें। अपनी स्वतन्त्रता को खतरें में डाल कर अपनें देशवासियों की आजादी की माँग करना एक बडे जिगर की माँग करता है। हमारे भारत में भी अपनी माँग के लिये डटे रहने वाले चंद लोगो में शर्मीला इरोम जैसी अदम्य जिजीविषा वाली एक महिला हैं।


मयन्मार में सेना के शासन के विरोध में सु कि का यह अभियान अब विश्व मिशन बन गया है। महज पाँच फुट चार इंच और केवल १०० पाऊँड की इस लौह प्रतिभा के लिये पूरा संसार नतमस्तक है। विश्व भर के लोग अहिंसा के रास्ते लोकतन्त्र की स्थापना के उनके विश्वास में उनकें साथ हैं। सु कि की माँ भारत में बर्मा की राजदूत थी। सु ने लेडी श्रीराम कालेज दिल्ली और शिमला में भी अपनी कुछ पढाई की थी। उसके बाद उन्होंने यूनाईटीड नेशनस और भूटान में भी काम किया। पर कहते है ना की कुछ लोगो को खुदा नें किसी खास काम के लिये तैयार किया होता है तो यही हुआ सु कि के साथ। तिब्बत मामलों के विज्ञानी एक ब्रिटिश व्यक्ति के साथ शादी कर वे अपने जीवन में व्यस्त थी। उनके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया जब १९८८ में अपनी बीमार माँ की देखभाल के लिये वे बर्मा गई। तब बर्मा में १९६२ से तानाशाही चल रही थी और वहाँ देशवासियों के जबरदस्त विरोध के बाद जनरल को इस्तीफा देना पडा। सेना ने विरोध को दबाने के लिये काफी बडे पैमाने पर हिंसा हुई। तब सु कि ने वहाँ नेशनल लीग फोर डेमोक्रेसी की स्थापना की। १९९० में उनकी पार्टी ने ८२ सीटों से चुनाव जीता। बावजुद उसके वहाँ की सेना ने सता उनहें सौंपनें से इनकार कर दिया। अपना कब्जा कायम रखते हुये, निर्वाचित पार्टी की नेता,सू कि को जेल में डाल दिया गया। तब से आज तक वे नजरबंद है। सु के वकील की अर्जी को अस्वीकार कर दिया गया। बर्मा के कानून के मुताबिक शांति व्यवस्था को भंग करने के आरोपी को पाँच साल से ज्यादा नजरबंद नहीं किया जा सकता।


अब सवाल यह है कि जो युनाईटीड नेशन विश्व भर के मसले सुलझानें का दावा रखती है उसका क्या कर रही है इस मामलें में। यू एन ने पहली बार इस बात को माना की सु की नजरबंदी अन्तर राष्ट्रीय और बर्मा के घरेलु दोनों के अधिकारों का उलंघन है।इसमें कोई शक नहीं की वर्तमान समय में लोकतन्त्र की स्थापना, मानवधिकार के लिये लडने वाली एक योद्दा कोई है तो वह है आँग सैन सू कि।

4 टिप्‍पणियां:

Asha Joglekar ने कहा…

सू की को तुरंत रिहा किया जाना चाहिये ।

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

पूरे विशव में मानवाधिकार का शोर मचाने वाले संगठन अब खामोश क्यूँ है???

richa ने कहा…

aapne bhut aache vishaye par roshni dali... aaj haumare desh ko bhi aise hi atal iradon walae logon ki zaroorat hai..

Hari Joshi ने कहा…

संयुक्‍त राष्‍ट्र उस हाथी की तरह है जिसके खाने के दांत और दिखाने के दांतों में अंतर होता है।