हिंदी के अलावा मराठी, मलयालम, तेलगु कविता से गुजरते हुये विंदा करंदीकर मराठी के कवि जिनहें ३९ वाँ भारतीय ज्ञानपीठ का पुरुस्कार प्राप्त हुआ की बेहद खूबसूरत कविता से रुबरु हुई कविता का शीर्षक हैमैनें तुम्हें देखा नहीं
मैंने तुम्हें देखा नही और शायद देखा भी नहीं
तुम्हारे पास भूखी आँखों को जीत ले जाने की शक्ति थी
प्रकाश का भाला तुम्नें सीने में फेंका होता, उतर धुव के
हिमगिरी को निगलने वाली तुम्हारी उस जलती प्यास से
मेरी आत्मा अकुलाई होती
मैं छटपटाया होता
लडखडाया होता
रात के जबडे में अपनी वेदना की गर्दन लेकर
सिसक-सिसक कर रोया होता
लेकिन मेरे पैर नहीं उगे होते तो
क्योंकि प्यास से आँख भले ही उगे, वेदना से पैर नहीं उगते
गीता से भी पैर नहीं उगते और उपनिषदों से भी पैर नहीं उगते
यही हो सामान्यों की शोकोतिका है- बाये पैर की संकरी त्रिज्या से ही
हरेक को अपने जीवन का एक अर्ध्य वर्तल बनाना होता है
उसे पूर्ण करने की अपनी प्यास इस फिसलन भरी मिटटी से तुम मत लेना हे असामान्य,
मैं अपना जख्म आज तुम्हारे सामने खोलने वाला हूँ
आज मैं तुम्हें धोखा नहीं दूंगा
मैनें तुम्हें देखा नहीं और शायद देखा भी नहीं होता।
2 टिप्पणियां:
मराठी रचना का हिंदी अनुवाद रोचक रहा . अच्छी कविता प्रस्तुति
vipin...bahut pyari kavita hai....
mere blog pe aana.....amarjeet
www.amarjeetkaunke.blogspot.com
एक टिप्पणी भेजें