कलाकार को समाज का आलोचक भी माना जाता है। माना यह भी जाता है कि कला के माध्यम से वह जो भी रच रहा है वह खूबसूरत और मन को देर तक तरोराज़ा रखने वाला होगा पर जब समाज़ की नुकीली कीले किसी कलाकार को चुभती हैं तो उसकीकलाकृति कुछ इस तरह से बन कर सामनें आयेगी जो वेद नायर ने अपनी इस कलाकृति में दशाई है। हम सोच सकते हैं जब एककलाकार संक्रमण के दौर से गुज़र रहा होता है तो उसके भीतर क्या कुछ टूट चुका होता है.वेद जी का मानना है कि आज के दौर में शासन पर कानून की पकड पूरी तरह ढीली हो चुकी है, बदमाशो ने सभ्य लोगों का जीनादूभर कर दिया है। शाति से काम करने वाले कलाकार को समाज की उन विसंगतियों से लडना पड रहा है जिस से अब तक उनकाकभी पाला नहीं पडा था। उनका दोष केवल इतना है कि वे इस तथाकथित लोकतंत्र के हिस्से है जहाँ सरेआम गुडों का बोलबाला हैजो उन्के शांतिमय जीवन को बर्बाद करने पर आमादा हैं. अपनी इस कलाकृति को वेद जी नए साल की शुभकामना सन्देश के रूपमे इस्तेमाल करते है तो इसका गहरा अर्थ होता है जिसे साफ़ तौर पर समझा जा सकता है.
पर्यावरण हमेशा से वेद नायर की प्रमुख चिंता का विषय रहा है. उन्की प्रस्तुत काम मे भी (सामाजिक पर्यावरण) का असर देखने को मिल रहा है. इसे देखे, समझे और स्वयं को इस दशा का सामना करने के लिये हमेशा तैयार रखे.
2 टिप्पणियां:
Painter’s emotions oozed out in this painting
And answer to the Question that fallows:
Where do you find your muses?
Regarding their trouble!
Einstein is quoted as having said that if he had one hour to save the world he would spend fifty-five minutes defining the problem and only five minutes finding the solution.
This quote does illustrate an important point: before jumping right into soling a problem, we should step back and invest time and effort to improve our understanding of it.
ved ji hamare samay ke zaruri kalakar hain. main alag se kuch likhne k bare mein taya kr raha hun. vipin aapne achhe rachnakar ki chintaon ko prastut kiya. thanks.
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