गरीबी इस कदर फैली हुई है हमारे आस पास की लगभग पचहतर पतिशत( विश्व बैंक के अनुसार भारत में ७५ पतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर कर रहे हैं) लोगो की तमाम उम दो जून की रोटी की जदद्दोजहद में ही गुजर जाती है। भारत में न्युनतम आय १०००-१२५० पति महीना है। हर बडे त्तयोहार पर इन्कें जीवन में और मायुसी आ जाती है। जब तक सभी लोगों को उन्की मेहनत का पूरा मूल्य
मिलता तब तक हम सभी को भी अपना सफर आसान नहीं समझना चाहिये
उनका सफररोटी का स्याह रूप ही
देखा है उन्होनें
है उन्होनें
जला हुआ
महकवीहिन
जंगल से आग तक
पेम से प्यास तक का
विचलित कर देने का सफर है उनका
हम सब जानते है
हमारे समांनतर एक भुखी पीढी चल रही है
धुप में नगें पाँव
लम्बें सफर के बाद
बची खुची हिम्मत के साथ
वे हादसों की तह में उतरते हैं
इस जीवन के विरूद्द नहीं
फिर भी वे
जिसनें उन्हें हर कदम पर छकाया है
वे इतिहास में अपना कदम रखते हैं
वतमान में अपनी सिकुडी हुयी जगह बनाते हैं
अनिश्चित भविष्य में भी अपने होने का पबल दावा रखते हैं
इंसानियत की पहल पर उँचा मचाँन तैयार करते हुये
लगातार धरती पर नजर टिकाये हुये
दुनियावी शउर से कोसो दूरजारी है उनका कभी न खतम होने वाला सफर।
2 टिप्पणियां:
छोटी सी रोटी की चिंता मे आदमी तो खो ही जाता है साहब . बौत अच्छा लगा.
mujhe aapki kavita pad kar aacha laga. ise tarah likhte rahiye..........
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