आदि काल से ही पशु पक्षी हमारे संगी साथी रहे हैं। हमारा बचपन जंगल के किस्से कहानियों को सुन कर गुजरा है। पर आज के इस उदोगीकरण के दौर में जंगल के इन निवासियों के जीवन को हर समय खतरा बढता जा रहा है।बाघों की गिरती संख्या में तो रोक लग गई है पर गिद्द, तितलियाँ और हमारे आसपास हमेशा चहकने वाली चिडियाँ भी धीरे धीरे कम होती जा रही है।विश्व वन्यजीव कोश का कहना है कि पिछली सदी में बाघों की तीन उपपज़ातिया पूरी तरह विलुप्त हो गई हैं। जंगल के इन निवासियों के जीवन को हर समय खतरा बढता जा रहा है।हमारे भारत में काफि बडा जंगल था और अब घट कर बहुत थोडा रह गया है। है।हम हर साल १४ ६ मिलियन हेकटेयर जंगलों को खोते जा रहे है
दस सालो में जंगल का काफि हिस्सा बडी परियोजनायों में चला गया है। इससे पकृति की सरंचना बिगड गयी है। पयटन भी वन्य जीवन के लिये नुकसानदायक सिद्ध हो रहे हैं। हमारी पकृति में एक क्षृखँला बनी हुयी है जिसमें हर जानवर का अपना अलग महत्तव है। यदि एक जानवर की संख्या कम होती है तो इस पाकृतिक कडी में दुषपरिणाम होगें। भारत में इस समय केवल ३५९ शेर ही बचे हैं, घडियालों की संख्याँ १४०० और बाघों की १५००। ताज्जुब की बात है की जंगल के ये पाकतिक जीव केवल गिनती भर के ही धरा पर शेष बचे हैं। हमारा राष्टीय पक्षी मोर भी इन दिनों अपने अस्तित्तव की लडाई लड रहा है। वन्य पयटन भी वन्य जीवन के लिये नुकसानदायक सिद्ध हो रहा है। भारत में लगभग बीस राज्यों में चीते हैं उनकी संख्या ३००० से लेकर ३५०० तक है। चीता लगभग खतम होने के कगार पर था पर अब सरकार नें इस ओर ध्यान दिया है। चीतों के लिये अभी भी कुछ उम्मीद बची हुयी है क्योकि भारत में उल्लास करात( जो कि वन्य जीव संरक्षण के निदेशक हैं) जैसे लोग मौजुद हैं जीवन की सेवा में कायरत हैं। अभी हाल ही में उल्लास कारात को भारत में पालॅ गेटी पुरस्कार दिया गया है। एक ओर तो जंगलों में सन्नाटा है तो दुसरी ओर शहरों में ध्वनि पदुषण लगातार बढ रहा है। इस विषय पर एक कविता
शोरगुल में गुम होती ध्वनियाँ
जब दिन बोलता
रात, चुपचाप सुना करती थी
ठीक ठाक था तब तक बोलने सुनने का यह
सिलसिला
फिर हुआ यह कि
दिन तो बोला ही बोला
रात, सुबह, शाम सभी ने बोलना
शुरु कर दिया
अब ये सब मिलकर
सभी सारे पहर
चकचक करते हैं लगातार
इन सबके शोर तले
दब कर रह गया है
एक सिरे से दुसरे सिरे का संदेश
पक्षियों की कलरव ध्वनि
हवा की मधुर सरसराहट
बुंदों की रिमझिम
मंञों की गुंज
ध्वनियों की बेशकिमती
ठीक ठाक था तब तक बोलने सुनने का यह
सिलसिला
फिर हुआ यह कि
दिन तो बोला ही बोला
रात, सुबह, शाम सभी ने बोलना
शुरु कर दिया
अब ये सब मिलकर
सभी सारे पहर
चकचक करते हैं लगातार
इन सबके शोर तले
दब कर रह गया है
एक सिरे से दुसरे सिरे का संदेश
पक्षियों की कलरव ध्वनि
हवा की मधुर सरसराहट
बुंदों की रिमझिम
मंञों की गुंज
ध्वनियों की बेशकिमती
अब खत्तम होनें की कगार है।
3 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया वन्य जीव के सरक्षण हेतु अभी गंभीर प्रयास करने क़ी ज़रूरत है |
अच्छा लिखा है ।
नववर्ष की शुभकामनाएँ ।
घुघूती बासूती
"पक्षियों की कलरव ध्वनि
हवा की मधुर सरसराहट
बुंदों की रिमझिम
मंञों की गुंज
ध्वनियों की बेशकिमती"
पर्यावरण में मेरी अच्छी खासी रुचि है. बल्कि मेरे बचपन के जो पेडपौधों, जानवरों एवं तितलियों की किस्में अब नहीं दिखती उनके बारे में सोच अकसर दिल दुखी होता रहता है.
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