गुरुवार, 9 अक्टूबर 2008

चिकित्सा और नोबेल

सन १९०१ से शुरू हुये नोबेल पुरुस्कार हर साल शांति, साहित्य, भौतिकी, रसायनशास्त्र, चिकित्सा के लिये मिलता है। भारत में अब तक गुरदेव रविन्द्रनाथ टैगोर को साहित्य, चन्द्रशेखर रमन को भौतिकी के लिये, डा हरगोविन्द खुराना को चिकित्सा के लिये, मदर टेरेसा को शांति के लिये, सुबरामनयम चदशेखर को भौतिकी, अमर्यत्य सेन को अर्थशास्त्र के लिये दिया गया है। वर्ष २००८ के लिये तीन युरोपियन वैज्ञानिको को सरवाईकल कैंसर और अच आई वी के लिये जिम्मेदार विषाणुओ की खोज के लिये दिया गया है। १९८१ में जब से ऐडस के बारे में पता चला तब से ही इस बिमारी को लेकर पूरी दुनिया में भय व्यापत है।१९९८ में जूर हयूसेन ने सरवाईक्ल कैंसर से गस्त महिला के खून से विषाणु की खोज की। उन्होनें पाया की एच पी वी नामक विषाणु का डी न ए, पीडित व्यक्ति के डी न ए के साथ जुड कर अनयांत्रित रूप से बढता रहता है। उनकी इस विषाणु की खोज के बाद से ही इसके खिलाफ दवाईयाँ इजाद करने में मदद मिली। १९८३ में बरे सिनूसी और लक मोंटेगनियर ने ऐडस के रोगी के लिफ नोडस को इकटठा कर उनमें से एच आई वी विषाणुओं को खोज निकाला। इन तीनों वैज्ञानिको द्वारा खोजे गये इन दो नये विषाणुओ की मदद से उनकी लिये रोगपतिरोधक दवाईयाँ बनाई जा सकी। इन तीनों चिकित्तसकों के योगदान से चिकित्सा जगत में हो रहे अनुसंधान में आगे भी मदद मिलती रहेगी।

2 टिप्‍पणियां:

richa ने कहा…
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richa ने कहा…

nice comment......we want next noble prize