शनिवार, 28 फ़रवरी 2009

जिन्दगीं

एक सपना दूसरे

सपनें से टकराता है

तो चमक पैदा करता है



एक रिश्ता दूसरें के निकट आता है

फिर नाकाम हो लौटता हैं



एक मुस्कुराहट

जो कहीं गुम हो टूटता तारा बन जाती है



एक उम्मीद जो आखिर में

खुद को

राख के ढेर में पाती है



जिंदगीं कहीं इन्हीं

अदभुत रिश्तों का नाम ही तो नहीं।