एक कविता शर्मीला इरोम के लिये
(रोश्नी की लकीर)
हर शब्द भारी है यहाँ
कहाँ हैं मोरपँखी सपनों की उडान
कहाँ प्रसँग हैं इंदधनुषी रंगों की मुस्कान
कहाँ है तिलिस्मी यौवन का उन्माद
पल प्रतिपल की पीडा लेखा जोखा है केवल
यहाँ इस सफेद चादर पर
चारों दीवारों के बीच रोश्नी की
महीन सी आवाजाही
के बीच जीवन की घनी जद्दोजहद है
अस्पताल के इस बिस्तर पर
इस धीमी श्वास के समर्थन के लिये
हजारों हाथ उठ कर
जल्द ही नीचें आ जाते हैं
इन हाथों को दुनियादारी के कई काम निपटानें हैं
दूर तक साथ चलनें का आश्वास्न दे कई आवाजें
भीड में गुम हो जाती हैं
तुम हमारा वर्तमान हो शर्मीला और
हम अपनें वर्तमान को समझनें में पूरी तरह असफल रहें हैं
इतिहास तो खुद ब खुद आगें बढकर थाम लेगा
खून के उन छीटों को
जो किसी को नजर नहीं आ सके
पर यहाँ प्रसंग इतिहास का है उस वर्तमान जो
ठीक हमारी नाक के नीचें से गुजर कर
इतिहास में अपनी कायरता की कहानी दर्ज करेगा
शर्मीला केवल तुम्हारी आवाज ही है
जो प्रतिध्वनि तक अपनी उर्जा बचाये रखती है
तुम्हारा रास्ता बेहद सीधा है और
शांत भी
हम शोर में रहने वालों को
तुम्हारी शांति बेचैन करती है
सूरज से टक्कर लेता तुम्हारे चेहरें का तेज और
तुम्हारी संघर्ष गाथा के एक एक शब्द हमें स्फुर्ती
देतें हैं
भारी बूटों की ठक ठक
बंदूकों की बट
अब एक चुनौती है
तुम्हारें नाजुक कँधों पर
हजारों जालिमों के कर्त्यों का भार है
पर तुम खुद सबसे सबल हथियार हो शर्मीला
संघर्ष की जो गहरी लाल रेखा तुम्नें उकेरी है
वह अपनी स्थापना का सफल उत्सव अवश्य मनायेगीं
रोश्नी की जो लकीर तुम्हें जीवन का खाद पानी उपलब्ध
करवा रही है हमें भी उस से एक बेहतर उम्मीद है।
हर शब्द भारी है यहाँ
कहाँ हैं मोरपँखी सपनों की उडान
कहाँ प्रसँग हैं इंदधनुषी रंगों की मुस्कान
कहाँ है तिलिस्मी यौवन का उन्माद
पल प्रतिपल की पीडा लेखा जोखा है केवल
यहाँ इस सफेद चादर पर
चारों दीवारों के बीच रोश्नी की
महीन सी आवाजाही
के बीच जीवन की घनी जद्दोजहद है
अस्पताल के इस बिस्तर पर
इस धीमी श्वास के समर्थन के लिये
हजारों हाथ उठ कर
जल्द ही नीचें आ जाते हैं
इन हाथों को दुनियादारी के कई काम निपटानें हैं
दूर तक साथ चलनें का आश्वास्न दे कई आवाजें
भीड में गुम हो जाती हैं
तुम हमारा वर्तमान हो शर्मीला और
हम अपनें वर्तमान को समझनें में पूरी तरह असफल रहें हैं
इतिहास तो खुद ब खुद आगें बढकर थाम लेगा
खून के उन छीटों को
जो किसी को नजर नहीं आ सके
पर यहाँ प्रसंग इतिहास का है उस वर्तमान जो
ठीक हमारी नाक के नीचें से गुजर कर
इतिहास में अपनी कायरता की कहानी दर्ज करेगा
शर्मीला केवल तुम्हारी आवाज ही है
जो प्रतिध्वनि तक अपनी उर्जा बचाये रखती है
तुम्हारा रास्ता बेहद सीधा है और
शांत भी
हम शोर में रहने वालों को
तुम्हारी शांति बेचैन करती है
सूरज से टक्कर लेता तुम्हारे चेहरें का तेज और
तुम्हारी संघर्ष गाथा के एक एक शब्द हमें स्फुर्ती
देतें हैं
भारी बूटों की ठक ठक
बंदूकों की बट
अब एक चुनौती है
तुम्हारें नाजुक कँधों पर
हजारों जालिमों के कर्त्यों का भार है
पर तुम खुद सबसे सबल हथियार हो शर्मीला
संघर्ष की जो गहरी लाल रेखा तुम्नें उकेरी है
वह अपनी स्थापना का सफल उत्सव अवश्य मनायेगीं
रोश्नी की जो लकीर तुम्हें जीवन का खाद पानी उपलब्ध
करवा रही है हमें भी उस से एक बेहतर उम्मीद है।
3 टिप्पणियां:
बहुत ही सुन्दर कविता है. शर्मीला इरोम के साहस और संघर्ष को आपने कविता में ढाल कर जो सम्मान दिया है, वह बेहद प्रशंशनीय है. मैं इस कविता के लिए आपको आज के दिन 'इन्कलाब जिंदाबाद कहते हुए शुभकामनाएं देता हूँ. शुक्रिया.
प्रेम
आप जितनी अच्छी है, उतना ही अच्छा लिख भी रही हैं।
इरशाद
आपकी कविता बहुत अच्छी है। यह आप और हम सोचते हैं। और कोई नहीं। आठ साल हो गए आज तक सुनने वाला कोई नहीं। मैं मणिपुर का रहनेवाला हूं। मैंने भी शर्मिला पर लंबा लेख और कविता लिखे हैं। आप मेरे ब्लॉग देख सकती है। नाम है pardesh123.blogspot.com
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