सोमवार, 12 अक्टूबर 2009

आओ चुनाव-चुनाव खेलें


चुनाव-चुनाव खेलेगे हमारे नेता लोग फिर चुनाव जितने के बाद जनता से लुका छिपी खेलेंगे। चुनाव को लेकर यह मज़ाक आम हो चला है और इससे भी बढी बात यह यह है कि हमें इस मज़ाक पर कोई शर्म भी नहीं है।
लोकतंत्र में चुनावों को उत्सव की संज्ञा दी जाती है, चुनावों की घोषणा होते ही नेताओ की बाँछें खिल जाती है। पर आम जनता की रूचि चुनावों की तरफ लगातार घटती जा रही है। विधायक लोग घर-घर जा कर अपने लिये वोट माँग रहे है। उन्हीं पुरानें वादों के साथ लोगो को हाँकने की एक बार फिर से पूरी कोशिश करेंगे। भारत जैसे गरीब देश में गरीबी रेखा में शामिल होने वाले बढते जा रहे है। दूसरी तरफ करोडपति उम्मीदवारों की संख्या तेज़ी से बढती जा रही है।हरियाणा में तेरह तारीख यानि कल नब्बे सीटों पर चुनाव होने वाले हैं। अपराधी लोग इस बार भी चुनाव लडेगें और इस बार भी महिला उम्मीदवारों की संख्या बेहद कम है। हरियाणा की राजनीति हमेशा से तीनों लालो भज़नलाल, बंसीलाल और देवीलाल और उनके वंशों के आस-पास ही घूमती रही है। पिछली बार भूपेंद्र हुडडा को मुख्यमंत्री बनाने पर नाराज़ हो कर भजनलाल ने अपनी अलग पार्टी बना ली थी। पर उससे उन्का पहले जैसा सिक्का नहीं जमा। अब की बार भी इन चुनाव से कोई क्रन्तिकारी आने की उम्मीद नहीं दिखती, जाने भारतीय राजनीति में निराशा का दौर कब कम होगा।

मंगलवार, 6 अक्टूबर 2009

मराठी कवि विंदा करंदीकर की कविता

हिंदी के अलावा मराठी, मलयालम, तेलगु कविता से गुजरते हुये विंदा करंदीकर मराठी के कवि जिनहें ३९ वाँ भारतीय ज्ञानपीठ का पुरुस्कार प्राप्त हुआ की बेहद खूबसूरत कविता से रुबरु हुई कविता का शीर्षक हैमैनें तुम्हें देखा नहीं
मैंने तुम्हें देखा नही और शायद देखा भी नहीं
तुम्हारे पास भूखी आँखों को जीत ले जाने की शक्ति थी
प्रकाश का भाला तुम्नें सीने में फेंका होता, उतर धुव के
हिमगिरी को निगलने वाली तुम्हारी उस जलती प्यास से
मेरी आत्मा अकुलाई होती
मैं छटपटाया होता
लडखडाया होता
रात के जबडे में अपनी वेदना की गर्दन लेकर
सिसक-सिसक कर रोया होता
लेकिन मेरे पैर नहीं उगे होते तो
क्योंकि प्यास से आँख भले ही उगे, वेदना से पैर नहीं उगते
गीता से भी पैर नहीं उगते और उपनिषदों से भी पैर नहीं उगते
यही हो सामान्यों की शोकोतिका है- बाये पैर की संकरी त्रिज्या से ही
हरेक को अपने जीवन का एक अर्ध्य वर्तल बनाना होता है
उसे पूर्ण करने की अपनी प्यास इस फिसलन भरी मिटटी से तुम मत लेना हे असामान्य,
मैं अपना जख्म आज तुम्हारे सामने खोलने वाला हूँ
आज मैं तुम्हें धोखा नहीं दूंगा
मैनें तुम्हें देखा नहीं और शायद देखा भी नहीं होता।