कलाकार को समाज का आलोचक भी माना जाता है। माना यह भी जाता है कि कला के माध्यम से वह जो भी रच रहा है वह खूबसूरत और मन को देर तक तरोराज़ा रखने वाला होगा पर जब समाज़ की नुकीली कीले किसी कलाकार को चुभती हैं तो उसकीकलाकृति कुछ इस तरह से बन कर सामनें आयेगी जो वेद नायर ने अपनी इस कलाकृति में दशाई है। हम सोच सकते हैं जब एककलाकार संक्रमण के दौर से गुज़र रहा होता है तो उसके भीतर क्या कुछ टूट चुका होता है.वेद जी का मानना है कि आज के दौर में शासन पर कानून की पकड पूरी तरह ढीली हो चुकी है, बदमाशो ने सभ्य लोगों का जीनादूभर कर दिया है। शाति से काम करने वाले कलाकार को समाज की उन विसंगतियों से लडना पड रहा है जिस से अब तक उनकाकभी पाला नहीं पडा था। उनका दोष केवल इतना है कि वे इस तथाकथित लोकतंत्र के हिस्से है जहाँ सरेआम गुडों का बोलबाला हैजो उन्के शांतिमय जीवन को बर्बाद करने पर आमादा हैं. अपनी इस कलाकृति को वेद जी नए साल की शुभकामना सन्देश के रूपमे इस्तेमाल करते है तो इसका गहरा अर्थ होता है जिसे साफ़ तौर पर समझा जा सकता है.
पर्यावरण हमेशा से वेद नायर की प्रमुख चिंता का विषय रहा है. उन्की प्रस्तुत काम मे भी (सामाजिक पर्यावरण) का असर देखने को मिल रहा है. इसे देखे, समझे और स्वयं को इस दशा का सामना करने के लिये हमेशा तैयार रखे.