गरीबी इस कदर फैली हुई है हमारे आस पास की लगभग पचहतर पतिशत( विश्व बैंक के अनुसार भारत में ७५ पतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर कर रहे हैं) लोगो की तमाम उम दो जून की रोटी की जदद्दोजहद में ही गुजर जाती है। भारत में न्युनतम आय १०००-१२५० पति महीना है। हर बडे त्तयोहार पर इन्कें जीवन में और मायुसी आ जाती है। जब तक सभी लोगों को उन्की मेहनत का पूरा मूल्य
मिलता तब तक हम सभी को भी अपना सफर आसान नहीं समझना चाहिये
उनका सफररोटी का स्याह रूप ही
देखा है उन्होनें
है उन्होनें
जला हुआ
महकवीहिन
जंगल से आग तक
पेम से प्यास तक का
विचलित कर देने का सफर है उनका
हम सब जानते है
हमारे समांनतर एक भुखी पीढी चल रही है
धुप में नगें पाँव
लम्बें सफर के बाद
बची खुची हिम्मत के साथ
वे हादसों की तह में उतरते हैं
इस जीवन के विरूद्द नहीं
फिर भी वे
जिसनें उन्हें हर कदम पर छकाया है
वे इतिहास में अपना कदम रखते हैं
वतमान में अपनी सिकुडी हुयी जगह बनाते हैं
अनिश्चित भविष्य में भी अपने होने का पबल दावा रखते हैं
इंसानियत की पहल पर उँचा मचाँन तैयार करते हुये
लगातार धरती पर नजर टिकाये हुये
दुनियावी शउर से कोसो दूरजारी है उनका कभी न खतम होने वाला सफर।
बुधवार, 28 नवंबर 2007
गुरुवार, 25 अक्तूबर 2007
चिकित्सा के नये आयाम
चिकित्सा के नये आयाम
आज के इस वैानिक युग में हर रोज कुछ नया और अदभुत हो रहा है।अभी भी कई गुढ रहस्य है जिन पर से
परदा उठना अभी बाकि है।
अभी हाल ही मैं चिकित्सा के लिये नोबल सैटम सैल टीम को मिला। तीनो वैानकों जिनके नाम कमशः मारियो कपाची, माटिन इवानस और ओलिवर सिमथइस है।
उन्कें इस पयोग का आधार यह था कि होमोलोगस रिकोमबिनेशन और सैटम सैल का इस्तेमाल।
होमोलोगस रिकोमबिनेशन का पयोग इस्तेमाल खराब जीन को ठीक करने के लिये किया जा सकता है।
इस काम में माटिन इवानस ने चुहे की एमबरायोनिक सैटम सैल को शरीर से निकालने में अभूतपूव भुमिका निभाई।
आज के इस वैानिक युग में हर रोज कुछ नया और अदभुत हो रहा है।अभी भी कई गुढ रहस्य है जिन पर से
परदा उठना अभी बाकि है।
अभी हाल ही मैं चिकित्सा के लिये नोबल सैटम सैल टीम को मिला। तीनो वैानकों जिनके नाम कमशः मारियो कपाची, माटिन इवानस और ओलिवर सिमथइस है।
उन्कें इस पयोग का आधार यह था कि होमोलोगस रिकोमबिनेशन और सैटम सैल का इस्तेमाल।
होमोलोगस रिकोमबिनेशन का पयोग इस्तेमाल खराब जीन को ठीक करने के लिये किया जा सकता है।
इस काम में माटिन इवानस ने चुहे की एमबरायोनिक सैटम सैल को शरीर से निकालने में अभूतपूव भुमिका निभाई।
बुधवार, 24 अक्तूबर 2007
पहली कविता, पहला ब्लाग और कादम्बिनी।
मेरी पहली कविता अकटूबर २००१ अंक में छपी थी और अब कादम्बिनी के अकटूबर २००७ अंक में छपे आलेख 'ब्लाग हो तो बात बने' को पढकर हिंदी ब्लाग बनाने की परेणा
आज फिर वही
और तुममें बस इतना-सा ही है कि मैं-मैं हूँ और तुम-तुम हो।माना कि हृदय धडकतें हैंदोनो के एक सी गति से,तिरोहित हो बहता हैअविरल लहुतुममें भी और मुझमें भी।फिर भी तुम-तुम हो और मैं-मैं।चारों अओर घटता रोज का यह हंगामा देखा है मैनें भी, तुमनें भीतुम अनदेखा कर बढ जाते हो आगेमैं रूक जाती हुँ क्योकि मैं,मैं हुँ, तुम- तुम।
आज फिर वही
और तुममें बस इतना-सा ही है कि मैं-मैं हूँ और तुम-तुम हो।माना कि हृदय धडकतें हैंदोनो के एक सी गति से,तिरोहित हो बहता हैअविरल लहुतुममें भी और मुझमें भी।फिर भी तुम-तुम हो और मैं-मैं।चारों अओर घटता रोज का यह हंगामा देखा है मैनें भी, तुमनें भीतुम अनदेखा कर बढ जाते हो आगेमैं रूक जाती हुँ क्योकि मैं,मैं हुँ, तुम- तुम।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)