गुरुवार, 21 अगस्त 2008

आज का यह दिन


यूँ तो हर दिन कि शुरूआत सूरज के उगने से ही होती है और हर दिन का अवसान सूर्य के अस्त होने से होता है। हर दिन की अलग कहानी होती है, कोई दिन अपनी शुरूआत में ही भारी दिखाई देता हैं, तो कोई दिन खुशनुमा तबियत लिये पैदा होता है। इनहीं दिनों के तयशुदा घंटों के बीच ही हमें अपनी दिनचर्या चलानी होती है। कोई दिन लाख कोशिशों के बावजुद सरकता नहीं दिखाई देता तो कुछ दिन तेजी से गुजर जाते हैं। कई दिन ऐसे होते हैं जिनहें हम धरोहर की तरह संजो कर रखना चाहते हैं और कुछ दिन ऐसे भी होते हैं जिनहें हम कभी याद नहीं करना चाहेंगे।
आज का यह दिन
मेरे लिये नहीं है
अमूमन कोई भी
कोई भी दिन मेरे लिये
नहीं होता
फिर भी
दिन की मटमैली चादर
ओढ कर,
रात का
काला लिहाफ
बिछा कर
बना ही लेती हूँ
अपने लिये
पूरे दिन का लम्बा तंबू।
पंक्ति में खडे
आने वाले कलैन्ङरी दिनों में से
एक माकूल दिन
अपने लिये छाँटकर
बाकि बचे हुये
साबूत दिनों को
दुनिया को सौंप कर
शुभकामनायें देती हुयी
लौट पडती हूँ
अपनी बहुत पहले से जमा की
हुई शामों के बीच।