बुधवार, 27 अगस्त 2008

प्रार्थना का वक्त


इस भागदौड से भरे माहौल में जीवन की रफतार बहुत तेज होती जा रही है। सभी स्थापित मूल्य बदलते जा रहे हैं। पैसा कमाने और अंधाधुंध आगे बढने की होड में हम आगे और आगे बढते जा रहे हैं अपने मूल्यों की तिलांजली दे कर। सादा जीवन और उच्च विचार की अवधारणा खतम होती जा रही है। भडकिले जीवन अब लोगों की दिनचर्या में नजर आने लगा है। अब किसी त्योहार में वह पहले वाली सादगी नहीं रही, लोग आडम्बर को महत्व देने लगे हैं। ऐसे माहौल में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो जीवन को उसी उच्चता से जीते है जो जीवन को जीने का सही तरीका है।

प्रार्थना का वक्त


यह प्रार्थना का वक्त है
सात्विक अहसास के साथ
हाथ जोडकर खडे हो जाओ
यही समय है जब
सभ्यताएं अपनी तयशुदा
भूमिकाएं छोडने के लिए
विवश हो चुकि हैं
भव्य और पुरानी इमारतें
अपने ही बोछ से
छुटकारा पाने के लिए
धीरे-धीरे दरक रही हैं
पिछले हफ्ते के सबसे अमीर
आदमी को पछाडकर
पहले पायदान पर जा विराजा
है कोई अभी-अभी
नंगे पांवों को कहीं जगह नहीं कीमती जूते जरूरत से ज्यादा
जमीन घेरते जा रहें हैं
अंधेरे को परे धकेल
सजसंवर कर रोश्नी सडक पर
आ गई है
उससे दोस्ती करने को
लालायित हैं कई हाथ
अपने भी
वाकई, यही प्रार्थना का
सही वक्त है।

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

सही है-बहुत उम्दा!!

Nitish Raj ने कहा…

बहुत ही उम्दा, भागती दौड़ती जिंदगी में प्रार्थना का वक्त। सही है