सोमवार, 8 सितंबर 2008

गुरु मंञ


हम सभी एक उद्देश्य लेकर इस धरती पर आते हैं। हमारे पास जीने का जितना भी समान है हमें उसी से ही काम चलाना पडता है। इंसानों से लेकर प्रकर्ति के पास अपने जीवन यापन का सभी साजों सामान मौजुद है। सभी जीवित चीजें अपनी निर्धारित गति से ही चलते हैं। आज से ही नहीं आदि अन्नत काल से ही यह नियम रहा है।
धरती पर पायी जाने वाली सभी वस्तुओं को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि हम सभी अपने-अपने दायरे में सुरक्षित हैं यानि हम सभी के पास अपने लिये गुरु मंत्र हैं।
प्रस्तुत है इसी विषय पर एक कविता

गुरू मंत्र


जिंदगी

अपनी मंजिल

खुद ब खुद तलाश लेती हैं

पगडंडियों को कभी कमी

नहीं रही कई जोडी पाँवों की


नदियों को भी हासिल हैं

चप्पुओं की हलचल


पृथ्वी के

पास हैं

मौसमों की बदलती परिक्रमा



आसमान ने भी

जुटा रखे हैं

चाँद, सूरज

ढेर सारे तारें


नन्हें बीज भी

ढूंढ लेते हैं

अपने विस्तार के लिये

थोडी सी जमीन


अपने-अपने

हितों को साधने का गुरू मंत्र

हम सभी के पास सुरक्षित है।

2 टिप्‍पणियां:

seema gupta ने कहा…

"very well said, nice to read"

Regards

शोभा ने कहा…

आसमान ने भी

जुटा रखे हैं

चाँद, सूरज

ढेर सारे तारें


नन्हें बीज भी

ढूंढ लेते हैं
बहुत ही सुंदर लिखा है. बधाई.