शनिवार, 28 फ़रवरी 2009

जिन्दगीं

एक सपना दूसरे

सपनें से टकराता है

तो चमक पैदा करता है



एक रिश्ता दूसरें के निकट आता है

फिर नाकाम हो लौटता हैं



एक मुस्कुराहट

जो कहीं गुम हो टूटता तारा बन जाती है



एक उम्मीद जो आखिर में

खुद को

राख के ढेर में पाती है



जिंदगीं कहीं इन्हीं

अदभुत रिश्तों का नाम ही तो नहीं।

8 टिप्‍पणियां:

MANVINDER BHIMBER ने कहा…

जिंदगीं कहीं इन्हीं
अदभुत रिश्तों का नाम ही तो नहीं। बहुत sunder रचना लिखी है आपने .....बधाई

Shikha Deepak ने कहा…

अद्भुत भावाव्यक्ति ........... अति सुंदर।

मुंहफट ने कहा…

विपिन भाई अच्छा लिख रहे हैं. गहन और सुस्वादु.

vandana gupta ने कहा…

zindagi ko bahut achchi tarah paribhashit kiya hai aapne.

mehek ने कहा…

bahut sundar

richa ने कहा…

nice thoughts abt life....

इरशाद अली ने कहा…

perfect

Parveen Verma ने कहा…

nissandeh yeh sachai ki abhivyakti hai...