रविवार, 12 जुलाई 2009

हम केवल हमीं से हैं


हर इंसान अपना एक आत्मसम्मान ले कर पैदा होता है। उसकी चेतना में सबसे पहले खुद का सम्मान करना मौजूद रहता है तभी तो जब हम एक छोटे से बच्चें को भी कई लोगों के सामनें डाँट देते हैं तो वो भी बुरा मान जाते हैं। हर इंसान के लिये सहज ही अधिकार उपलब्ध हैं केवल इसीलिये की वह सबसे पहले एक मानव है और इस धरती पर सांसें ले रहा है।
मानवधिकार का मुद्दा आज से नहीं सदियों पहले से ही इस दुनिया में मौजूद है। यहाँ तक की हमारे हिन्दू वेदों, बब्य्लोनियन के हाम्मुरबी कोड, बाईबल, कुरान और क्नफयूसियस की नीतियाँ इन सभी में लिखित रूप हमें हमारे अधिकार, हमारे कर्त्तव्य बताये गये हैं। जो आज के हमारे लिखित मानवाधिकार है। दूसरे विश्व युद्ध से हुये भारी नुकसान के बाद युनाईटीड नेशन ने मानवाधिकारों के बारें में सोचा और फिर लिखित रुप में अस्तित्व में आये। ये अधिकार सभी देश के नागरिको पर बिना किसी भेदभाव के लागू होते हैं। हमारे भारतीय संविधान में भी सभी को बराबर का हक दिये गये हैं।मानवाधिकार नैतिक अधिकारों से ही उत्पन्न हुये है और नैतिकता इस बात में समाहित है की इस धरती पर सभी को समभाव से रहना चाहियें। मानवाधिकारों में हम न केवल राजनैतिक और आर्थिक अधिकारों की बात करते है बल्कि सामाजिक, अपराधिक, बोलने की स्वतंत्रता, किसी भी धर्म को अपनाने की स्वतंत्रता ये सभी अधिकार शामिल हैं। लेकिन राष्टीय और अंतराष्टीय अधिकारों से गुजरने के बाद यह माना जाने लगा है कि मानवाधिकार नैतिक और कानूनी दोनों ही हैं।
हाल ही में यह भी माना जानें लगा है की गरीबी भी मानवाधिकार का उल्लंघन तो नहीं है। एक तरफ तो अमीरी की चकाचौंध और दुसरी तरफ गरीबी के दारूण स्थिती एक इंसान को दुसरे इंसान से किस तरह अलग करती है। हमारे विश्व समुदाय में एक जमात ऐसी भी है जिस के पास खाने के लिये एक वक्त की रोटी भी नहीं है। कानून में राष्टीय और अंतराष्टीय अधिकारों से गुजरने के बाद यह बात साबित होती है की मानवाधिकार नैतिक और कानूनी अधिकार दोनो ही हैं।मानवाधिकारों को पाँच भागों में बाँटा गया है और मानवाधिकार का मुख्य विषय एक इंसान को मामूली चीजें मुहैया करवाना है। मानवाधिकार की भाषा बेहद सीधी और सरल होनी चाहिये और विषम परिस्तिथी में मानव द्वारा इस्तेमाल में की जा सकती हो। एक साधारण से साधारण इंसान को किसी दूसरे इंसान के साथ राष्टीय और अंतराष्ठीय स्तर पर किस तरह का व्यवहार करना चाहियें। मानवाधिकार के बिना सभ्य समाज की कल्पना ही रोंगटे खडे देता है। २००२ में गुजरात में हुआ नरसंहार,ब्राजील, जामिबिया, ईजिपट,रशिया, युकेन,जामबिया,पाकिस्तान,चीन,बेलारूस, कीनिया, इन सभी में मानव अधिकारों का घनघोर रुप से उलंन्घन होता है। मानवाधिकार का रूल न १८ कहता है कि सभी को अपनी मन मुताबिक धर्म को अपनाने की छूट होनी चाहियें, बावजूद इसके कई देशों में बाईबल खरीदनें की पाबंदी है, जो लोग इस का उलंघन करते हैं उनहें बेइज्जती का सामना करना पडता है। हमारे भारत का तो यह हाल है कि संसार का सबसे विशाल लोकतंत्र होने के बावजूद मानवाधिकार की कोई व्याख्या भी नहीं है और ना ही इससे सम्बंधित कोई रिकॉर्ड ही उपलब्ध है। आम आदमी से बुरा व्यवहार, दहेज के लिये लडकियों को जलाना, सेना द्वारा महिलाओं का रेप, पुलिस कस्टडी में मौत, बाल मजदुरी करवाना आदि अनेकों मानवाधिकार उलंघन के किस्से प्रकाश में हैं। हाल ही में श्रीलंका में हुये हमले में हुई जान माल की हानि हुई और मानव अधिकार का सरेआम उलंघन हुआ था। अभी भारत में होमोसैक्सयुएलटी को गुनाह के दायरे से हटा दिया गया है क्योंकि इसे भी मानवाधिकार का उलंघ्न माना जा रहा था, इस पर नये सिरे से बहस छिड गई है। भारत में मानवाधिकारों के लिये काफि कुछ किया जाना बाकि है। भारत में बच्चों से साथ होने वाले दुवव्यवहार को रोकने के लिये कोई कानून नहीं है।आज जब दुनिया भर में मानव अधिकारों की सुरक्षा का हो हल्ला मचा है तो यह जानना हर इंसान को जरूरी है की उसे उसके मानव मात्र होने की वजह से ही ये अधिकार मिले हैं और उसे इनका पूरी जानकारी होनी चाहिये।

1 टिप्पणी:

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

आप ठीक कह रही हैं... देश में कदम कदम पर मानवाधिकार का उल्लंघन हो रहा है... मेट्रो और बड़े शहर में ये स्थिती है तो पूरे देश के बारे में सो़च कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं... हाल ही में उत्तराँचल की कैपिटल सिटी देहरादून जिसे की काफी फ्रीएंद्ली सिटी माना जाता है... इक युवा को पुलिस ने बिना अपराध के गिरफ्तार कर कस्टडी में मार डाला और एनकाउंटर बता दिया... ऐसे सैकरो घटनाएं देश भर में रोज़ होती हैं... इक जानकारी पूर्ण आलेख के लिए धन्यबाद