बचपन से युवावस्था की ओर दिनों में जब ढूंढ-ढूंढ कर देश दुनिया की कला, सिनेमा, लेखन, अध्यातम की चीज़े पढने का शौक हुआ करता था, लगभग उन्हीं दिनों ऐलिज़ाबेथ ब्रूनर के बारे में पडने को मिला। विदेशियों का भारत प्रेम मुझे हमेशा अभिभूत करता रहा है। उस वक्त वे दिल्ली में रहती थी, किसी परिवार को पेईग गेस्ट के तौर पर अपनी देखभाल के लिये रखा हुआ था उन्होनें। आज ही अखबार में दोनों माँ-बहनों पर केन्द्रित दिल्ली के इंदिरा गाँधी नेशनल सेन्टर में सेमिनार और प्रदर्शनी का विज्ञापन देखा तो एक बार फिर से जीवन के जीने का उनका सलीका याद आया जो आद्यात्मिकता की ओज से परिपूर्ण था।
भारत की अध्यात्म, धर्म, दर्शन से प्रभावित होकर लोग यहाँ आते रहे है और भारत को अपनी कर्मभूमि बनाते रहे है। ताज्जुब नहीं अगर भारत की मनोहारी भूमि उनका हर कदम पर मार्गदर्शन करती है तो। लेखक रश्किन बोंड, ओडिसी नर्तकी शोरेन लोयेन, चित्रकार स्वेतोस्लाव रोरिक जैसे अनगिनत फनकार भारत को अपनी कर्म भूमि बनाते रहे हैं। ऐसी ही विलिक्षण प्रतिभा की धनी हंगेरियन महिला चित्रकारों, माँ ऐलिज़ाबेथ सेस ब्रूनर और बेटी ऐलिज़ाबेथ ब्रूनर जिनकी उम्र उस समय उन्नीस साल की थी, ने भारत की पवित्र भूमि में कदम रखा। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें1931 शांतिनेकतन में आमंत्रित किया था। एलिजाबेथ सेस ब्रूनर ने शान्ति निकेतन में अपना पहले वर्ष गहरे ध्यान में बिताया। माँ और बेटी शांति निकेतन, पश्चिम बंगाल में दो साल के लिए रूकी, उन दो वर्षों के बाद, टैगोर माँ और बेटी को सलाह दी कि वे भारत की यात्रा करें, जो उन्होंने 1932 और 1935 के बीच की।
भारत की अध्यात्म, धर्म, दर्शन से प्रभावित होकर लोग यहाँ आते रहे है और भारत को अपनी कर्मभूमि बनाते रहे है। ताज्जुब नहीं अगर भारत की मनोहारी भूमि उनका हर कदम पर मार्गदर्शन करती है तो। लेखक रश्किन बोंड, ओडिसी नर्तकी शोरेन लोयेन, चित्रकार स्वेतोस्लाव रोरिक जैसे अनगिनत फनकार भारत को अपनी कर्म भूमि बनाते रहे हैं। ऐसी ही विलिक्षण प्रतिभा की धनी हंगेरियन महिला चित्रकारों, माँ ऐलिज़ाबेथ सेस ब्रूनर और बेटी ऐलिज़ाबेथ ब्रूनर जिनकी उम्र उस समय उन्नीस साल की थी, ने भारत की पवित्र भूमि में कदम रखा। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें1931 शांतिनेकतन में आमंत्रित किया था। एलिजाबेथ सेस ब्रूनर ने शान्ति निकेतन में अपना पहले वर्ष गहरे ध्यान में बिताया। माँ और बेटी शांति निकेतन, पश्चिम बंगाल में दो साल के लिए रूकी, उन दो वर्षों के बाद, टैगोर माँ और बेटी को सलाह दी कि वे भारत की यात्रा करें, जो उन्होंने 1932 और 1935 के बीच की।
उस समय के सभी महान विभूतियों से वे दोनों मिली जिनमें गाधी जी, जवाहर लाल नेहरू, दलाई लामा, फिल्मकार सत्यजीत राय आदि शामिल थे और उन सभी को उन्होनें अपने कैनवास में उतारा। देश के हर छोर का भ्रमण किया। उनकी पेंटिगस में परिदृश्य और प्रतीकात्मक निर्माण, हिमालय के दृश्य, फूल के पेड़, ग्रामीण जीवन और क्लासिक वास्तुकला शामिल हैं,। प्रकृति और प्राचीन भारतीय मूर्तिकला.ऐलिजाबेथ को प्यार से हंगरी की बेटी भी कहा जाता था। ऐलिजाबेथ की 60 साल की में के बाद ऐलिजाबेथ अकेली हो गई पर उनहें चाहने वालों ने कभी उनहें तन्हा नहीं छोडा ।
जिस समय उन्होनें ढेरों चित्र बनाये थे उन दिनों दिल्ली में कोई उचित प्रदर्शनी हॉल नहीं था, इसलिए चित्र प्रदर्शनी का आयोजन इम्पीरियल जनपथ पर' होटल किया जाता था। काफि लम्बे समय तक वे बिमार रही तब उनके रंग, कैनवास उनसे दूर होते चले गये।लंबी बीमारी के बाद नई दिल्ली में 2 मई को निधन हो गया, आज उनकी याद एक बिजली की तरह ज़हन में उभरी और साथ ही याद आये उनके तजस्वी चेहरे के साथ उनके शांत और ठहरे हुये चित्र ।
1 टिप्पणी:
बढ़िया प्रस्तुति..एलिजाबेथ ब्रूनर जी के विषय में पढ़ कर अच्छा लगा..
एक टिप्पणी भेजें