सोमवार, 10 जनवरी 2011
मरीना तसेवेतायेवा की कविता
1892 में जन्मी रशियन कवियत्री मरीना तसेवेतायेवा की कविता शुद्धता और शक्ती के प्रतीक मानी गयी है, उनकी कविता रोमांटिक और जुनूनी कविता मानी जाती है।
उनकी यह कविता 'मैं लिखती रही' मन की गहराई में उतरती है।
मैं लिखती रही
मैं लिखती रही स्लेट पर
लिखती रही पंखों पर
और नदी की रेत पर
बर्फ पर, काँच पर।
लिखती रही सौ-सौ बरस पुराने डण्ठलों पर
सारी दुनिया को बताने के लिए
कि तू मुझे प्रिय है, प्रिय है, प्रिय है
लिख डाला यह इन्द्रधनुष से पूरे आकाश पर।
कितनी इच्छा थी मेरी कि हर कोई
सदियों तक खिलता रहे मेरे साथ,
फिर मेज़ पर सर टिकाये
एक के बाद एक
काटती रही
सबके सब नाम
पर तू जो बँध गया है बिके हुए कलर्क के हाथ
क्यों ङंक मारता है मेरे ह्रदय में
जिसे मैंने बेचा नहीं वह अँगूठी
आज भी रखी है मेज़ पर
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3 टिप्पणियां:
कविता बहुत ही अच्छी है. एक स्त्री का दर्द यहाँ अपने शब्दों में जलकता है.
- हरेश परमार
कविता बहुत ही अच्छी है. एक स्त्री का दर्द यहाँ अपने शब्दों में जलकता है.
- हरेश परमार
कविता बहुत ही अच्छी है. एक स्त्री का दर्द यहाँ अपने शब्दों में जलकता है.
- हरेश परमार
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