अब में राशन की कतारों मे नज़र आता हू
कभी आंसू कभी खुशी बेची 
आदमी आदमी को क्या देगा 
मुह की बात सुने हर कोई
ये जो जिन्दगी की किताब है 
परखना मत परेख्नी से कोई अपना नहीं रहता 
जगजीत सिंह अपनी एल्बम  मे नए आवाजों को शामिल कर उनका होंसला बढ़ाते थे 
विनोद सह्गेल और सिजा रॉय ऐसे ही दो नाम थे जिनकी बेहद खूबसूरत आवाज़ को जिसने भी सुना वाह वाह कर उठा. सुनने वाले के कानों मे एक ताजगी का अद्भुद रस घुलता चला गया 
जगजीत सिंह ने फिल्मो मे भी खूब गाया उनके द्वारा स्वरबद्ध कुछ फ़िल्मी गजलें 
तुम  इतना  जो  मुस्कुरा   रहे  हो 
मेरे  दिल  में  तू  ही  तू   है 
वो  कागज़  की  कश्ती 
यह  तेरा  घर  यह  मेरा  घर 
फिर  आज  मुझे 
रिश्ता  यह  कैसा  है 
हमसफ़र  बनके  हम 
यह  बता  दे  मुझे  ज़िन्दगी 
प्यार  मुझ  से  जो  किया  तुमने  तो  क्या  पोगी 
तू  नहीं  तो  ज़िन्दगी  में  और  क्या  रह  जायेगा 
कोई  यह  कैसे  बताये 
यूँ  ज़िन्दगी  की  राह  में  मजबूर  हो  गए 
झुकी  झुकी  सी  नज़र 
तुम  को  देखा  तो  यह  ख्याल  आया 
 
जगजीत सिंह की गजले और अवसाद का गाढ़ा रंग 
 
जगजीत सिंह के स्वर मे जो अवसाद का रंग घुला हुआ है वह शिव कुमार बटालवी जैसे कवियों के दर्द भरे लेखन मे  और गहरा हो जाता है. उनके गाये  ये पंजाबी गीत मील का पत्थर बन गए है. जिन्हे पंजाबी  भाषा से परिचय नहीं है वे भी इन्हे सुनकर प्रभावित हुए बिना नहीं रहते.
माये नी माये मै एक शिकरा यार बनाया नी
रोग बन  के  रह  गिया  है  पियर  तेरे  शहर  डा " ,
 "यारियां  राब  करके  मेनू  पाएं   बिरहन  दे  पीदे  वे ",
 "एह  मेरा  गीत  किसी  नि  गाना "
 जगजीत सिंह के गाये पंजाबी टप्पे भी खूब प्रसिद्ध हुए हैं 
मसलन 
चूल्हे आग न घडे दे विच पानी चड्याँ दी नहीं निभदी
कोठे थे आ माहिया 
लारा लापा लाई रखदा 
मिट्टी डा बावा बनाया नी 
जीवन मे रंग भरते यह गीत और ग़ज़ल हमारी दुःख तकलीफे हर लेने का मादा रखते है और जीवन की उदासी को परे कर देते हैं, हम जगजीत सिंह को सुनते और खुश होते कि हमारे पास जगजीत सिंह जैसा विरल गायक है जिस की आवाज  हमारे मन मे सीधी उतरती है. देश विदेश मे उनके गजलो के हजारो शो हुए. 
जगजीत सिंह का अपना अलहदा मुकाम 
१९७० के उस दौर मे जब फ़िल्मी दुनिया के पास एक से बढ़ कर एक नायब गायक थे जिन मे मो रफ़ी, किशोर कुमार, तलत महमूद और हेमंत कुमार का नाम पहली पंक्ती मे था तब अपनी अलग पहचान बनाना आसन नहीं था. साहिर के रोमांटिक गीत और मोहमद रफ़ी की मुलायम आवाज़ का नशा कभी न उतारने वाला नशा था. पर आज़ादी के बाद का ये सुरूर से भरा दौर था जब नई समाज का नए सिरे से गठन हो रहा था. उसके बाद १९८० का दौर मोह्हंग का दौर हो चला था उस आधुनिक समय के लिये जनमानस कई चीजों को परख रहा था. उसी समय राजस्थान के गंगा नगर का एक नौजवान ग़ज़ल का साथ ले कर संगीत के मैदान मे उतरा. वह जानता था  की मंजिल मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं.और यह उस जुनून का ही परिणाम था कि  कुछ समय बाद  जगजीत सिंह नाम का एक सितारा गायन के मैदान पर उतरता है और चारों दिशाओं में छा जाता है.
१९८७   मे मल्टी ट्रैक रेकॉर्डिंग मे गाने वाले जगजीत सिंह और चित्र सिंह पहले गायक बने और उस समय उनकी उस एल्बम का नाम रखा गया ' बियोंड टाइम' 
जगजीत सिंह और चित्र सिंह की इस पहली एल्बम के ये गाने बहुत लोकप्रिय हुए 
झूठी सच्ची आस पर जीना आखिर कब तक 
ये करे और वो करें 
मेरा दिल भी शौक से तोड़ो
लोग हर मोड़ पे 
अपनी आग को जिन्दा रखना 
 फ़िल्मी गीतों से अलग इन गजलो का तापमान इंसानी रूह के उस तापमान से मिलता जुलता था जो रोमांटिक, मायावी, तिलस्मी और सोंदर्य बोध मे लिपटा हुआ नहीं था अपितु इन्सान की रोजमर्रा  की थकान, उब, और  टूट से जुड़ाव रखता था.
गरज बरस प्यासी धरती को 
घर से मस्जिद है बहुत दूर 
बदला न अपने आप को 
जगजीत सिंह का गजलो का चुनाव बेहतरीन होता था जो जीवन की शुष्क मिट्टी सा धूसर होता था
यही नहीं जब जगजीत सिंह ने फिल्मो की तरफ रुख किया तो भी खूब वाह वाही लूटी.फिल्म प्रेमगीत का गीत होठो से छु लो तुम मेरा गीत अमर कर दो तो एक कालजई गीत बन ही गया है.
फ़िल्मी अभिनेताओ राज किरण और फारुक शेख  पर जगजीत सिंह की आवाज़ खूब फबी.इसके अलावा महेश भट्ट निर्मित फिल्म 'अर्थ' के कैफी आज़मी द्वारा लिखे सभी गीत बेहद लोकप्रिय हुए. 
जगजीत सिंह ने हिंदी और पंजाबी फिल्मों के अलावा भी खूब दिल खोल कर खूब गाया, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी की लिखी कविताओ पर जगजीत सिंह ने दो अलबम निकले १९९९ में नई दिशा और २००२ में संवेदना जो काफी मशहूर हुई. 
समाज सेवा को जगजीत सिंह ने गायकी के साथ जोड़ा बच्चो के लिये समर्पित संस्था क्राई के लिये अलबम  क्राई फॉर  नाम से  और प्रभु भक्ति की माँ के अद्भुद भजनों से  हरे कृष्ण,  माँ, हे  राम ...हे  राम , इछाबल  और  मन  जीती  जगजीत  (पंजाबी ) में सच तो यह है की बौद्धिक संसार तो महान कलमकारों की लेखनी का जानकार और  कायल था ही पर आम जनता की जुबान पर  महान रचनाकारों की शायरी  को गुनगुनाने का श्रेय काफी हद तक जगजीत सिंह को ही जाता है उन्होने  मिर्ज़ा ग़ालिब ,फ़िराक गोरखपुरी , कतील शिफाई, कबीर, अमीर  मीने , कफील आजेर, सुदर्शन फाकिर  और निदा फाजली  और समकालीन शायरों  जैसे कि जका सिदिदिकी , नज़र बकरी , फैज़ रतलामी, राजेश रेड्डी और अभिषेक श्रीवास्तव के लेखे को अपनी बुलंद आवाज़ मे गाया. 
हाल के वर्षो मे बनी कुछ फिल्मो  जैसे दुश्मन , सरफ़रोश , तुम  बिन  और  तरकीब मे उनकी गजलो का इस्तेमाल किया गया  जिसे  म्यूजिक पर धिरक्ने वाली युवा पीढी ने भी खूब पसंद किया.  
हाल ही मे (२०११) काफी समय के बाद जगजीत सिंह और चित्रा सिंह की गोदी ने युगल स्वरों मे एक ग़ज़ल संग्रह रिकॉर्ड किया.
बेमिसाल जोड़ी  के  रूप मे जगजीत सिंह और चित्र सिंह की आवाज़ अमर रहेगी. जब दोनों युगल स्वरों मे गाते है
बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी
आये है समझाने लोग है कितने दीवाने लोग 
उस  मोड़ से शुरू करे फिर ये  जिन्दगी 
अगर  हम कहें और वो  मुस्कुरा दे 
 मेरे जैसे  बन जाओगे 
तो हमेशा चिर परिचित करतल ध्वनि बज उठती है. 
१९८८ मे गुलजार द्वारा निर्देशित मिर्ज़ा ग़ालिब के जीवें पर बना टेलीविज़न सीरियल मे जगजीत सिंह ने अपनी बुलंद आवाज़ दी तो लगा मिर्ज़ा असदुल्लाह खां ग़ालिब फिर से जीवित हो उठे हैं. उनकी शायरी आज भी लाखो लोगों की जुबान पर है जो जगजीत सिंह की आवाज़ पा कर आम जन तक पहुँची. 
आह को चाहेये 
बगीचा ए अफ्ताल है दुनिया मेरे आगे
दिल ए  नादान  तुझे  हुआ क्या है
कबसे हूँ क्या बताऊँ
न  था कुछ तो खुदा था 
वो फिराक और वो विसाल कहाँ 
यह न थी हमारी किस्मत 
जुल्मत कदे में मेरे 
उनके देखे से 
हजारों खावईश्य ऐसी 
जगजीत सिंह ने २००७ 'अदा' और २००८ मे  'सजदा' नाम से लता मंगेशकर के साथ गया और आशा भोंसले के साथ गयी ग़ज़ल के साथ उनकी विडियो एल्बम जब सामने तुम आ जाते हो न जाये क्या हो जाता है युवाओ मे काफी पसंद की गयी. बाद में ऑडियो के साथ वीडियो मे भी जगजीत सिंह की गजलो के साथ देश के नामी मोडल्स ने काम किया  गुलज़ार के साथ मिर्ज़ा ग़ालिब मे अपनी आवाज़ देने के बाद  गुलज़ार की लिखी 'त्रिवेणी' नाम की हिंदी और उर्दू की नई विधा, जिस मे तीन मिसरे होते हैं को भी जगजीत सिंह ने अपनी आवाज़ दी जिसे सोनी म्यूजिक ने 'कोई बात चले'  नाम से रिलीज़ किया.
 चिठ्ठी न कोई सन्देश, जाने कौन से देश तुम चले गए
 दिमाग की नस फटने के कारण जगजीत सिंह मुंबई के लीलावती हॉस्पिटल मे भारती हुए तो  देश विदेश मे उनकी सलामती के लिये प्रार्थनाये की जाने लगी पर १० अक्टूबर को  वे अपने कहने  वालो की आंखे नाम कर परम धाम चले गए .
यदि जगजीत सिंह के पास कुछ और जीवन के हिस्सा होता  तो वे ग़ज़ल की दुनिया मे अपना कुछ  और रंग भरते  और हमारे जीवन  के साथ कुछ और सुर जुड़ जाते. गायक अपनी गीतों के जरिये सदा अमर रहता है यह एक  शाश्वत सत्य है और इसी सत्य पर हम सबको  यकीन  है.