रविवार, 3 अगस्त 2008

जीवन और उसकी उजास


जिन्दगीं कभी एक सी नहीं रहती। तमाम तरह के उतार चढाव जीवन में आते रहते हैं। कुछ सपनों, इच्छाओं, उम्मीदों को मिला जुला कर बनती है जिन्दगीं। बचपन से लेकर बुढापे तक कई आस के सहारे हम चलते हैं। इसी बीच कई बार हम टुटनें के कागार पर खडे होते हैं फिर कोई शक्ति हमें आकर धाम लेती है और जीवन आगें चल निकलता है। प्रेरणा देने वाली कई शक्तियाँ हमारे आस पास मौजुद रहती हैं, जिनसे हम अपने आप को मजबुत बनाते हैं। इसी तरह कई नाकारात्तमक शक्तियाँ भी हमारे नजदीक होती है जो अवरोध पैदा करने के लिये तैयार रहती हैं। जीवन के इस ताने बाने के बीच हम चलते रहते है अपने सपनों को साथ के कर और उम्मीद करते हैं की वे एक दिन जरुर पुरे होगें।

जीवन और मैं
यह जीवन जब
सत्य कथा के नजदीक जा पहुचाँ
तब साफ हुई
कई धुंधली चीजें
फिर देखा
जीवन का विनयास कितना लम्बा चौडा है
और मेरा कितना सामान
समेट पायेगी
यह जिन्दगीं।

अब मेरे नजदीक
यह रहस्य नहीं रहा की
जीवन का गोल चेहरा
टटोलनें के लिये
दसों ऊँगलियाँ चाहिये
साबूत की साबूत।

बसंत तो कभी पत्तझर
अंधेरा तो कभी उजाला,
आँसु तो कभी मुस्कान,
यह अंजुरी कभी भीखाली नही रही।


जिस जीवन के साये तले मैं
सांस लेने का दंभ भरती हुँ
वह खुद भाग दौड कर
अपनी जगह शक्ति सुनिश्चित करने में
जुटा हुआ है।


जीवन और मृत्यु के
अंतराल के बीच
सार्थक करना है
मुझे स्वयं को।


यही कारण है कि मैं
इन पक्तियों के लिखे जाने तक मैं
जीवन को जीने की
भरपुर कोशिश में हुँ।

2 टिप्‍पणियां:

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

दर्पण की भाति सचाई दिखाती हुई कविता

richa ने कहा…

aap ne jis prakar jivan ka bkhan kiya hai wo sarahniy hai