शुक्रवार, 8 अगस्त 2008

खुद को दोहराते हम




जीवन का कैनवास बहुत लम्बा चौडा है। हम ढेर सारी चीजें समेट कर चलते हैं जिनमें से कई चीजें पीछे बहुत पीछे छुट जाती हैं तब हम ठहर कर सोचते है कि हमारे लाख चाहने पर भी ऐसा क्या हुआ की वह वस्तु हमें नहीं मिली। तब हार कर हम ढुढतें हैं कोई मंत्र जो जीवन में फिर से रोशनाई भर दे और नहीं तो कम से कम जीवन को जी भर सके। हम अंधेरे से पार नहीं जा सकते तो कम से कम उस से दोस्ती तो कर सकते हैं। सपनें जब टुटतें हैं तब गहरा जखम देतें है तब हमें ही हौसले का दामन धामना ही पडता है और फिर समय सबसे बडा मरहम है जो अपना काम बेखुबी से करता चलता है। तब हमें पता लगता है की जीवन से बडी कोई चीज नहीं है उसके आगे सब चीज छोटी है।


खुद को दोहराते हम



क्या केवल इतिहास ही खुद को दोहराता है


हम नहीं
सपनों के बेल बुटों पर
चढते फिसलते, चोट खाते हम
अपनेआप को साबूत बचाये रखनें
की कोशिश में नाकामयाब हम

स्मतियों के खूबसूरत मोतियों से
जीवन से हर छोटे बडे खानों को
भरने में लगे हम

पीछे छूटे हुए पर अफसोस जताते हुये
किसी नई पहल की चिंगारियों के
इंतजार में हम

जीवन की वध-स्तंभ पर टकरा-टकरा कर
लहुलुहान होते हम
खुद को बार-बार दोहराने की जददोजहद में
बेतहाशा खच होते हम

लाख कोशिशों के बाद भी नहीं रोक पाते
खुद को दोहराने से।

2 टिप्‍पणियां:

बालकिशन ने कहा…

"लाख कोशिशों के बाद भी नहीं रोक पाते
खुद को दोहराने से।"
sahi kaha aapne.
bahut achche.

DUSHYANT ने कहा…

?????????